Dev Uthni Ekadashi Katha


Dev Uthani Ekadashi Katha : देवउठनी एकादशी की 3 हैं कथाएं, जानिए पूजन विधि, श्री हरि को कैसे जगाएं,


कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशीदेवोत्थान एकादशीदेवउठनी ग्यारसप्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन श्रीहरि विष्णु निद्रा से जागते हैं। यहां पढ़ेंपौराणिक कथा

 

कथा- 

एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तकको एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पासआकर बोलामहाराजकृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी किठीक हैरख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगापर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।

 

उस व्यक्ति ने उस समय 'हांकर लीपर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वहराजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगामहाराजइससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझेअन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाईपर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआतब राजा ने उसेआटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जबभोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगाआओ भगवानभोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीताम्बरधारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में  पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करकेभगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया। 




पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराजमुझे दुगुना सामान दीजिए। उसदिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं।इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोलामैंनहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूंपूजा करता हूंपर भगवान नेमुझे कभी दर्शन नहीं दिए।

 

राजा की बात सुनकर वह बोलामहाराजयदि विश्वास  हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ केपीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहापरंतु भगवान आए। अंत में उसने कहाहे भगवानयदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। लेकिनभगवान नहीं आएतब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादाजान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसेअपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदानहीं होताजब तक मन शुद्ध  हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा औरअंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।




देव प्रबोधिनी एकादशी की व्रत कथा 2 

 

एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहारकरते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथासड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछाहे सुंदरीतुमकौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?


 

तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोलेमैं निराश्रिता हूं। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं हैकिससे सहायतामांगूराजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोलातुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।

 

सुंदरी बोलीमैं तुम्हारी बात मानूंगीपर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्णअधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगीतुम्हें खाना होगा।

 

राजा उसके रूप पर मोहित थाअतः उसने उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी।रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदिपकवाए तथा परोसकर राजा से खाने के लिए कहा। यह देखकर राजा बोला-रानीआज एकादशी है। मैं तोकेवल फलाहार ही करूंगा।

 

तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोलीया तो खाना खाओनहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काटलूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोलीमहाराजधर्म  छोड़ेंबड़े राजकुमार कासिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगापर धर्म नहीं मिलेगा।

 

इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर  गया। मां की आंखों में आंसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगातो मां ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी। तब वह बोलामैं सिर देने के लिए तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षाहोगीजरूर होगी। राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवानविष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताईराजनतुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए।

 

भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोलाआपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धारकरें। उसी समय वहां एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परमधाम को चला गया।


देवउठनी एकादशी की एक प्रमुख कथा शंखासुर नामक राक्षस की है। शंखासुर ने तीनों लोकों में बहुत हीउत्पात मचाया हुआ था। तब सभी देवताओं के आग्रह करने पर भगवान विष्णु ने उस राक्षस से युद्ध कियाऔर यह युद्ध कई वर्षों तक चला।

 

युद्ध में वह असुर मारा गया और इसके बाद भगवान विष्णु विश्राम करने चले गए। कार्तिक शुक्ल एकादशीके दिन भगवान विष्णु की निद्रा टूटी थी और सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की थी।


 

शिव महापुराण के अनुसार पौराणिक समय में दैत्यों का राजा दंभ हुआ करता था। वह बहुत बड़ा विष्णु भक्तथा। कई सालों तक उसके यहां संतान नही होने के कारण उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाकर उनसे श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया। यह मंत्र प्राप्त करके उसने पुष्कर सरोवर में घोर तपस्या की। भगवान विष्णु उसकीतपस्या से प्रसन्न हुए और उसे संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया।

 

भगवान विष्णु के वरदान से राजा दंभ के यहां एक पुत्र में जन्म लिया। इस पुत्र का नाम शंखचूड़ रखा गया।बड़ा होकर शंखचूड़ ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्नहोकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि वह हमेशा अजर-अमर रहे कोई भी देवता उसे नही मार पाए। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया और कहा कि वह बदरीवन जाकरधर्मध्वज की पुत्री तुलसी जो तपस्या कर रही है उससे विवाह कर लें।

 

शंखचूड़ ने वैसा ही किया और तुलसी के साथ विवाह के बाद सुखपूर्वक रहने लगा।

 

उसने अपने बल से देवताओंअसुरोंदानवोंराक्षसोंगंधर्वोंनागोंकिन्नरोंमनुष्यों तथा त्रिलोकी के सभीप्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली। वह भगवान श्रीकृष्ण का परम भक्त था। शंखचूड़ के अत्याचारों से सभीदेवता परेशान होकर ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्मा जी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए। भगवान विष्णु नेकहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही होगीअतः आप उनके पास जाएं। भगवान शिव नेचित्ररथ नामक गण को अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। चित्ररथ ने शंखचूड़ को समझाया कि वहदेवताओं को उनका राज्य लौटा दे। परंतु शंखचूड़ ने मना कर दिया और कहा कि वह महेश्वर से युद्ध करनाचाहता है।


भगवान शिव को जब यह बात पता चली तो वे युद्ध के लिए अपनी सेना लेकर निकल पड़े। इस तरह देवताऔर दानवों में घमासान युद्ध हुआ। परंतु ब्रह्मा जी के वरदान के कारण शंखचूड़ को देवता नहीं हरा पाए।भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने के लिए जैसे ही अपना त्रिशूल उठायातभी आकाशवाणी हुई किजब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है और इसकी पत्नी का सतीत्व अखण्डित हैतब तक इसकावध असंभव है।


आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उससे श्रीहरिकवच दान में मांग लिया। शंखचूड़ ने वह कवच बिना किसी संकोच के दान कर दिया। इसके बाद भगवानविष्णु शंखचूड़ का रूप बनाकर तुलसी के पास गए।

 

शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल के द्वार पर जाकर अपनी विजय होने की सूचना दी। यहसुनकर तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पतिरूप में आए भगवान का पूजन किया  रमण किया। ऐसा करते हीतुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया।

 

तब तुलसी को पता चला कि वे उनके पति नहीं हैं बल्कि वे तो भगवान विष्णु है। क्रोध में आकर तुलसी नेकहा कि आपने छलपूर्वक मेरा धर्म भ्रष्ट किया है और मेरे पति को मार डाला। अतः मैं आपको श्राप देती हूंकि आप पाषण होकर धरती पर रहे।

 

तब भगवान विष्णु ने कहादेवी। तुम मेरे लिए भारत वर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो।तुम्हारा यह शरीर नदी रूप में बदलकर गण्डकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसीका वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्रामबनकर रहूंगा।


गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम  तुलसी काविवाह संपन्न कर मांगलिक कार्यों का प्रारंभ किया जाता है। हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार इस दिनतुलसी-शालिग्राम विवाह करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है।


आइए जानें कैसे करें व्रत-पूजन :- 

 

देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौकबनाएं।

पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें।

 

फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें।

 

देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठभगवत कथा और पुराणादि का श्रवण औरभजन आदि का गायन करें




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